इलाहाबाद विश्वविद्यालय : 135 साल में चौथी विदेशी छात्रा ने की हिंदी में पीएचडी
इलाहाबाद विश्वविद्यालय : 135 साल में चौथी विदेशी छात्रा ने की हिंदी में पीएचडी
पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के खाते में एक नया आयाम जुड़ गया। विश्वविद्यालय के 135 साल के इतिहास में हिंदी विषय से चौथे विदेशी विद्यार्थी के तौर पर मारीशस की दीया लक्ष्मी बंधन ने पीएचडी की डिग्री हासिल की है। दीया ने विभाग के डॉ. सूर्य नारायण के निर्देशन में शोध कार्य पूरा किया है।
इससे पहले पद्य भूषण फादर कामिल बुल्के और श्रीलंका के लक्ष्मण सेनेविरतने व ईजीपी गुणासेना ने हिंदी विभाग से डीफिल की डिग्री हासिल किया है। अब तक विश्वविद्यालय से 18 विदेशी छात्रों ने अलग-अलग विषय में शोध कार्य पूरा किया है। पीएचडी की डिग्री प्राप्त करने वालों में दीया 19वीं विदेशी छात्रा हैं।
डॉ. सूर्य नारायण सिंह ने बताया कि मॉरीशस की दीया लक्ष्मी बंधन ने मारीशस के प्रेमचंद कहे जाने वाले अभिमन्यु अनत के कथा सहित्य पर शोध किया। उनका ऑनलाइन वायवा शुक्रवार को हुआ। उन्होंने बताया कि हिंदी विभाग में फादर कामिल बुल्के ने डॉक्टर माता प्रसाद गुप्त के निर्देशन में शोध किया था। श्रीलंका के लक्ष्मण सेनेविरतने और ईपीजी गुणासेना ने प्रो. रामकिशोर शर्मा के साथ डीफिल पूरा किया है। विभाग से डीफिल की उपाधि पाने वाली दीया लक्ष्मी चौथी विदेशी विद्यार्थी हैं। डॉ. सूर्य ने बताया कि विदेशी छात्र को शोध कराने वाले तीसरे शोध निदेशक हैं।
‘रामकथा: उत्पत्ति और विकास पर किया था शोध
फादर कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम के फलैण्डर्स प्रांत के रम्सकपैले नामक गांव में एक सितंबर 1909 को हुआ। लूवेन विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कॉलेज में बुल्के ने वर्ष 1928 में दाखिला लिया। वर्ष 1935 में वे भारत पहुंचे जहां पर उनकी जीवनयात्रा का एक नया दौर शुरू हुआ। वर्ष 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने हिंदी साहित्य में एमए किया और फिर वहीं से 1949 में रामकथा के विकास विषय पर पीएचडी किया जो बाद में ‘रामकथा: उत्पत्ति और विकास किताब के रूप में चर्चित हुई।