नरेंद्र गिरि की षोडशी:देशभर से आए साधु-संतों ने नरेंद्र गिरि को अर्पित किए श्रद्धासुमन, ग्रहण किया षोडसी का भोजन, सभी संत-महात्माओं को दिया गया दान-दक्षिणा
Narendra Giri Death Case: Narendra Giri Shodasi Is On Today, 10 Thousand People Will Accept Prasad, CM, Deputy CM Can Take Part, Shri Baghambri Gaddi Math Is Ready To Welcome Saints
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की आज 5 अक्टूबर को षोडशी धूमधाम हुई। इसमें भाग लेने के लिए देशभर से साधु-संतों के आने का सिलसिला रविवार से ही शुरू हो गया था, जोकि मंगलवार शाम तक जारी रहा। देश के कोने-कोने से आए साधु-संतों ने नरेंद्र गिरि को अपना श्रद्धासुमन अर्पित किए व उनकी आत्मा की शांति के लिए सामूहिक प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद गूदड़ अखाड़े के 16 संतों को दान-दक्षिणा दिया गया और भोजन कराया गया। इसके बाद बलवीर गिरि की चादर विधि की गई। चादर विधि के बाद बलवीर गिरि को श्री बाघंबरी गद्दी का नया महंत बनाया गया। देशभर से आए साधु-संतों ने उन्हें चादर भेंट की। इसके बाद भंडारा शुरू हुआ। षोडसी में पूरे देश से आए साधु समाज व आम लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।
रवींद्र पुरी ने अपने हाथ में ले रखी है कमान
नरेंद्र गिरि की षोडसी पांच अक्टूबर को निर्धारित थी। इसकी तैयारी पिछले सप्ताह से तेज कर दी गई थी। निरंजनी अखाड़े के सचिव रवींद्र पुरी ने 20 सितंबर से ही प्रयागराज में डेरा डाल दिया था। इस पूरे आयोजन की कमान उन्होंनें अपने हाथ में ले रखी है। नरेंद्र गिरि की लोकप्रियता को देखते हुए मठ को भव्य तरीके से सजाया गया है। मठ में टेंट और कारपेट बिछाया गया है। साधु-संन्यासियों के स्वागत के लिए विशेष रूप से तैयारी की गई थी।
षोडशी में खर्च हुए एक करोड़ रुपए
नरेंद्र गिरि की षोडसी के लिए श्री निरंजनी अखाड़े ने एक करोड़ रुपये बजट निर्धारित किया है। इसमें साधु परंपरा के अनुसार देशभर के 3 अखाड़ों को छोड़कर सभी अखाड़ों से संबंधित साधु-संत और आम लोगों ने भाग लिया। षोडशी में गूदड अखाड़े के संतों को विशेष निमंत्रण दिया गया था। इस अखाड़े के साधु-संतों को नरेंद्र गिरि के पसंद की चीजें दान में दी गईं। सबसे पहले इसी अखाड़े के संतों को भोजन कराया गया। उसके बाद अन्य साधु व आम लोगों ने भोजन शुरू किया। षोडसी का यह भोज जारी है।
खुद का पिंडदान किए 16 संतों को मिला विशेष दान
श्री निरंजनी अखाड़े के सचिव रवींद्र पुरी ने बताया कि गृहस्थ की मृत्यु के बाद उसका कर्म 13वें दिन होता है। संत-महात्मा की मृत्यु के बाद उसका कर्म 16वें दिन होता है। यह परंपरा सनातन काल से ही चली आ रही है। परंपरा के अनुसार एक गृहस्थ की 13वीं पर 13 ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, दान-दक्षिणा दी जाती है, उनका आदर-सत्कार किया जाता है।
ठीक उसी प्रकार संत-महात्मा के कर्म में भी 16 ऐसे संन्यासियों को दान-दक्षिणा दी जाती है, जिन्होंने अपना पिंडदान दे दिया हो। इन महात्माओं को नरेंद्र गिरि जी महाराज को जो चीजें पसंद थीं, उसके मुताबिक कपड़े, भोजन, आभूषण, चांदी का ग्लास, बर्तन व अन्य 16 भौतिक चीजें दान में दी गईं। उनका आदर-सत्कार किया गया।
सभी संतों को आने-जाने का खर्च दिया गया
देश के कोने-कोने से आने वाले साधु-महात्माओं को उचित दान-दक्षिणा के अलावा उनके आने और जाने का खर्च भी दिया गया। सभी षोडसी का दान लेने वाले 16 महात्माओं काे लाल रंग का एक-एक शूटकेस सोने की अंगूठी, छड़ी, वस्त्र आदि 16 वस्तुएं दान में दी गईं।