अमित शाह : जोखिम लेकर फैसला करते हैं मोदी, जिद नहीं, क्योंकि परिवर्तन लाना है|
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सरकारी न्यूज चैनल संसद टीवी को एक खास इंटरव्यू दिया. उन्होंने ये इंटरव्यू सत्ता में प्रधानमंत्री मोदी के 20 साल पूरे होने पर दिया है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सरकारी न्यूज चैनल संसद टीवी को एक खास इंटरव्यू दिया. उन्होंने ये इंटरव्यू सत्ता में प्रधानमंत्री मोदी के 20 साल पूरे होने पर दिया है. इस दौरान उन्होंने कहा कि पीएम मोदी का जीवन सार्वजनिक रहा है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने प्रशासन की बारिकियों से समझा है. उन्होंने ये भी कहा कि गुजरात में बीजेपी की हालत खराब थी, उसे पीएम मोदी ने ही खड़ा किया.
जब उनसे पूछा गया कि प्रधानमंत्री मोदी के जीवन में कब-कब चुनौतियां आईं, इसके जवाब में शाह ने कहा, 'उनके सार्वजनिक जीवन के तीन हिस्से किए जा सकते हैं. एक तो बीजेपी में आने के बाद का उनका पहला कालखंड संगठनात्मक काम का था. दूसरा कालखंड उनके मुख्यमंत्री का रहा और तीसरा राष्ट्रीय राजनीति में आकर प्रधानमंत्री बने. इन तीन हिस्सों में उनके सार्वजनिक जीवन को बांधा जा सकता है.'
गुजरात में बीजेपी को मोदी ने खड़ा कियाः शाह
उन्होंने कहा, 'जब उनको (पीएम मोदी) बीजेपी में भेजा गया, संगठन मंत्री बनाया गया, उस वक्त बीजेपी की स्थिति गुजरात में खस्ताहाल थी और देश में दो सीटें आई थीं, तब वो संगठन मंत्री बने और 1987 से उन्होंने संगठन को संभाला. 1987 के बाद सबसे पहला चुनाव आया अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का. पहली बार बीजेपी अपने बूते पर कॉर्पोरेशन में सत्ता में आई. उसके बाद बीजेपी की यात्रा शुरू हुई. 1990 में हम हिस्सेदारी में सरकार में आए. 1995 में पूर्ण बहुमत में आए और वहां से बीजेपी ने आजतक पीछे मुड़कर नहीं देखा है.'
उन्होंने कहा, 'दूसरा बड़ा चैलेंज तब आया जब वो मुख्यमंत्री बने. मैं साबरमती विधानसभा से आता हूं, वहां से भी हम हार गए थे. गुजरात में बड़ा भूकंप आया था. सारे चुनाव कांग्रेस जीत गई थी. 70 के दशक के बाद पहली बार बीजेपी राजकोट म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में हारी थी और अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन हम 1987 के बाद पहली बार हारे.'
उन्होंने कहा, 'पीएम मोदी को प्रशासन को कोई अनुभव नहीं था, लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के उन्होंने प्रशासन की बारीकियों को समझा. योजनाएं बनाईं और योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने का काम किया. और ऐसा लगता था कि जो भूकंप बीजेपी के लिए धब्बा बन जाएगा, वो भूकंप के काम की पूरी दुनिया में सराहना हुई.'
शाह ने कहा, 'गुजरात में कांग्रेस ने आदिवासियों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया. उन तक योजनाएं नहीं पहुंचाई. मोदी ने सारी बिखरी हुई योजनाओं को एक किया और संविधान के अनुसार उनकी जनसंख्या के हिसाब से उनको अधिकार दिए. वनबंधु कल्याण योजना से आदिवासियों को फायदा हुआ.'
उन्होंने कहा, 'यूपीए की सरकार में हर क्षेत्र में देश नीचे की ओर जा रहा था, दुनिया में देश का कोई सम्मान नहीं था, नीतिगत फैसले महीनों तक सरकार की आंतरिक कलह में उलझते रहते थे, एक मंत्री महोदय तो 5 साल तक कैबिनेट में नहीं आए. ऐसे माहौल में उन्होंने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला, आज सारी व्यवस्थाएं अपनी जगह पर सही हो रही हैं.' उन्होंने कहा, 'मोदी जी जोखिम लेकर फैसले करते हैं ये बात सही है. हमारा लक्ष्य देश में परिवर्तन लाना है. 130 करोड़ की आबादी वाले विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को दुनिया में एक सम्मानजनक स्थान पर पहुंचाना है.'
शाह ने कहा, 'दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण देश की सुरक्षा भी चाक-चौबंद हुई. कभी कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि भारत एयर स्ट्राइक या सर्जिकल स्ट्राइक कर सकता है. कभी नहीं सोच सकता था कि कोई प्रधानमंत्री कहेगा कि भारत में 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने की क्षमता है. हम 11 नंबर से 6वें नंबर की अर्थव्यवस्था बन चुके हैं.' उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इन तीनों चैलेंज का सामना किया है और ये उनकी लीडरशिप की बहुत बड़ी क्वालिटी है.
मोदी डिक्टेटरशिप में यकीन रखते हैं?
इस सवाल पर अमित शाह ने कहा, 'मैंने उन्हें नजदीक से काम करते देखा है. ये सारे जो लोग आरोप लगाते हैं, बिल्कुल बेबुनियाद आरोप हैं. मैंने मोदी जैसा श्रोता देखा ही नहीं है. कोई भी बैठक हो, कम से कम वो बोलते हैं और बहुत धैर्य से सुनते हैं और फिर उचित निर्णय लेते हैं. कई बार तो हमें भी लगता है कि क्या इतना सोच-विचार चल रहा है. लेकिन वो सबकी बात सुनते हैं और छोटे से छोटे व्यक्ति के सुझाव को गुणवत्ता के आधार पर महत्व देते हैं. तो ये कह देना कि वो निर्णय थोंप देने वाले नेता है, इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है.'
जब उनसे पूछा गया कि ये परसेप्शन क्यों बना? तो उन्होंने कहा, 'ये जानबूझकर परसेप्शन बनाया जाता है. अब फोरम में जो डिस्कशन हुआ वो बाहर नहीं आता है. तो लोगों को लगता है कि फैसला मोदीजी ने ले लिया. जनता को, पत्रकारों को भी नहीं मालूम है कि ये फैसला सामूहिक चिंतन से लिया है. और स्वाभाविक है कि फैसले तो वही करेंगे, जनता ने उन्हें अधिकार दिया है. लेकिन सबके साथ चर्चा करके, सबको बोलने का मौका देकर, सबके माइनस-प्लस पॉइंट सुनकर, ये फैसले होते हैं.'
उन्होंने कहा, 'कुछ लोग जो हमारे वैचारिक विरोधी हैं. वो सच कुछ भी हो, लेकिन सच को तोड़-मरोड़कर लोगों के सामने कैसा रखना है, उसकी भी कोशिश करते हैं. और छवि को दूषित करने की भी कोशिश होती है.'
जोखिम लेकर फैसले क्यों लेते हैं मोदी?
शाह ने कहा, 'मोदी जोखिम लेकर फैसले लेते हैं ये बात सही है. क्योंकि उनका मानना है और ये बात उन्होंने कही भी है कि हम देश बदलने के लिए सरकार में आए हैं. सरकार चलाने के लिए सरकार में नहीं आए हैं. हमारा लक्ष्य देश के अंदर परिवर्तन लाना है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को दुनिया में एक सम्मानजनक स्थान पर पहुंचाना है. वो इसलिए नहीं डरते हैं कि सत्ता में बने रहने का लक्ष्य नहीं है. उनका एकमात्र लक्ष्य है इंडिया फर्स्ट. इसलिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ जब आप देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो जोखिम के साथ फैसले लेंगे.'
उन्होंने कहा, 'नोटबंदी का फैसला और कोई ले ही नहीं सकता. इससे अर्थतंत्र के माहौल में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है. इसी प्रकार से जीएसटी. सब बात तो करते थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी. और जीएसटी को सर्वानुमत से लागू करवाया. मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि इक्का-दुक्का चीज छोड़कर कोई भी चीज का फैसला बहुमत से नहीं लिया गया है, सर्वानुमत से लिया गया है. जबकि जीएसटी काउंसिल में सभी दल की सरकार के वित्त मंत्री हैं. तीन तलाक हटाने की किसी में हिम्मत नहीं थी. वन रैंक, वन पेंशन. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक का सवाल ही पैदा नहीं होता था. आज सबको मालूम है कि भारत की सीमाओं के साथ कोई छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी.'
उन्होंने आगे कहा, 'धारा 370 के बारे में सबको मालूम था कि ये टेंपररी है, इसकी कोई जरूरत नहीं है. लेकिन किसी ने छूने की हिम्मत नहीं की. हमारी संस्कृति योग को दुनिया तक पहुंचाया. योग दिवस को यूएन से मान्यता मिली, बहुत बड़ी बात है.' उन्होंने कहा, 'ये सब मजबूत इच्छाशक्ति वाले प्रधानमंत्री के बिना नहीं हो सकता है.'
जब शाह से पूछा गया कि ये विश्वास कहां से आता है कि हम कोई भी फैसला लेंगे, उसे जनता स्वीकार कर लेगी? इस पर उन्होंने कहा, 'ये इसलिए आता है क्योंकि इसमें कोई निजी स्वार्थ नहीं है. दलगत स्वार्थ होता है तो विश्वास की कमी होती है. व्यक्तिगत स्वार्थ होता तो और कमी होती. पर जब आप जनता के हित में ही सोचते हो तो मैं मानता हूं कि विश्वास इसी से बनता है.