पिशाचिनी का आवाहन : पूरा जंगल अंधेरे में डूबा हुआ था

पूरा जंगल अंधेरे में डूबा हुआ था, और हर तरफ खामोशी छाई हुई थी

पिशाचिनी का आवाहन : पूरा जंगल अंधेरे में डूबा हुआ था

पिशाचिनी का आवाहन

गाँव के बड़े बुजुर्गों का कहना था कि जिस रात अमावस्या पड़ती है, उस रात गाँव के पास वाले जंगल में कुछ अजीब और खतरनाक घटित होता है। लोगों ने कई बार वहाँ से गुजरते समय चीखें सुनी थीं, लेकिन कोई भी इस बारे में बात करने की हिम्मत नहीं करता था। यह भी माना जाता था कि उस जंगल में एक पुराना मंदिर है, जहाँ सदियों पहले एक भयंकर तांत्रिक ने "पिशाचिनी" का आवाहन किया था। उस तांत्रिक की मंशा अपनी शक्ति बढ़ाने की थी, लेकिन उसने जो शक्तिशाली आत्मा बुलाई, उसने उसे ही निगल लिया। उसके बाद से ही पिशाचिनी उस मंदिर के आसपास वास करती है, जो भी उसकी सीमा में प्रवेश करता है, उसे वह अपने पंजों में जकड़ लेती है।

इस गाँव में एक युवक, शेखर, रहता था। शेखर एक साहसी और जिज्ञासु व्यक्ति था, जिसे रहस्यों और प्राचीन कथाओं में गहरी दिलचस्पी थी। उसे पिशाचिनी की कहानी में विश्वास नहीं था, और उसने ठान लिया था कि वह उस मंदिर के रहस्य का पर्दाफाश करेगा। उसके दोस्तों ने उसे बार-बार मना किया, लेकिन शेखर ने किसी की नहीं सुनी।

अमावस्या की रात को, शेखर ने अकेले ही जंगल की ओर कदम बढ़ाया। रात का समय था, और आसमान में एक भी तारा नहीं था। पूरा जंगल अंधेरे में डूबा हुआ था, और हर तरफ खामोशी छाई हुई थी। शेखर ने हाथ में एक जलती हुई मशाल पकड़ी हुई थी, जिससे उसे रास्ता दिखता रहे। उसने अपने कदमों को तेजी से बढ़ाया, और कुछ ही देर में वह उस पुराने मंदिर के पास पहुँच गया।

मंदिर खंडहर में बदल चुका था, उसके चारों ओर जंगली बेलें लिपटी हुई थीं, और दरवाजे पर जाले लटके हुए थे। शेखर ने मशाल की रोशनी में देखा कि मंदिर के दरवाजे पर कुछ अजीब से चिन्ह बने हुए थे। वे चिन्ह तांत्रिक अनुष्ठान के प्रतीत हो रहे थे। शेखर ने बिना किसी हिचकिचाहट के मंदिर का दरवाजा खोल दिया और भीतर प्रवेश किया।

भीतर का दृश्य डरावना था। वहाँ एक टूटी-फूटी वेदी थी, जिस पर पुराने समय के तांत्रिक चिन्ह अंकित थे। मंदिर की दीवारों पर भी विचित्र चित्र बनाए गए थे, जो किसी अनजानी भाषा में कुछ लिखे हुए थे। शेखर ने वेदी के पास जाकर उसकी जाँच की, और वहाँ उसे एक पुरानी किताब मिली। उस किताब में तांत्रिक मंत्र लिखे हुए थे, जिनका प्रयोग पिशाचिनी का आवाहन करने के लिए किया जाता था।

शेखर ने बिना सोचे-समझे उन मंत्रों का उच्चारण करना शुरू कर दिया। जैसे ही उसने आखिरी मंत्र का उच्चारण किया, अचानक से मंदिर के भीतर एक भयानक आंधी चलने लगी। हवा इतनी तेज थी कि उसकी मशाल बुझ गई, और पूरे मंदिर में घुप्प अंधेरा छा गया। शेखर को महसूस हुआ कि वह अब अकेला नहीं है। उसने किसी की ठंडी सांसों को अपने गले के पास महसूस किया।

उसने चारों ओर देखा, लेकिन उसे कुछ नहीं दिखा। अचानक, मंदिर के भीतर एक भयानक चीख सुनाई दी। शेखर का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने महसूस किया कि वह जो भी कर रहा था, वह एक भयानक गलती थी। तभी, एक धुंधली सी आकृति मंदिर के कोने से प्रकट हुई। वह आकृति एक महिला की थी, लेकिन उसका चेहरा विकृत और डरावना था। उसकी आँखें गहरे काले रंग की थीं, और उसके होंठों से खून टपक रहा था। वह धीरे-धीरे शेखर की ओर बढ़ रही थी।

शेखर का शरीर सुन्न हो गया, और उसकी टाँगें कांपने लगीं। उसने भागने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर जैसे जमीन में धंस गए थे। पिशाचिनी उसके करीब आई और उसने अपनी लंबी, नुकीली उंगलियों से शेखर की गर्दन को पकड़ लिया। शेखर की साँसें घुटने लगीं, और उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। उसकी चेतना धीरे-धीरे खत्म हो रही थी, और उसने अंतिम बार अपनी आँखों से पिशाचिनी के विकृत चेहरे को देखा।

सुबह होने तक शेखर का कोई नामोनिशान नहीं था। गाँववाले उसे खोजने जंगल गए, लेकिन उन्हें सिर्फ मंदिर के पास उसकी जलती हुई मशाल मिली। शेखर का कोई पता नहीं चला, और उसकी कहानी गाँव में एक भयानक चेतावनी बन गई। अब कोई भी उस मंदिर की ओर जाने की हिम्मत नहीं करता। गाँववालों का मानना है कि पिशाचिनी ने शेखर को अपनी दुनिया में खींच लिया, और उसकी आत्मा अब भी उस मंदिर में भटकती रहती है। 

पिशाचिनी का आवाहन एक चेतावनी बन गई कि कुछ रहस्यों को छेड़ना केवल मृत्यु को आमंत्रित करना है। और जो भी इस चेतावनी को नजरअंदाज करेगा, वह शेखर की तरह ही गायब हो जाएगा।